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Tuesday, December 29, 2015

यह मीडिया नहीं “भेडि़या” है जनाब

यह मीडिया नहीं “भेडि़या” है जनाब

 बिम्मी शर्मा:
Source : http://www.himalini.com/

"भारत और मोदी के विरोध में अगर सनी लियोन भी कुछ बोलेगी तो वह भी नेपाल के अखवार में बैनर न्यूज बन जाएगा"
 
"गोली चलाने के कायदे, कानून को दरकिनार कर सीधे किसी के सर में गोली दाग कर मारना भी नेपाली मीडिया को नेपाल की पुलिस का साहस और सौर्य नजर आता है । पर निर्दोष नागरिक की हत्या पर उसे तनिक भी पीड़ा नहीं होती ?"

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 नेपाल की बेचारी मीडिया समाचार बनाने को ले कर कितनी गरीब और लाचार हो गई है कि उसे बिहार में चारा घोटाले के प्रमुख अभियुक्त और पूर्व मुख्यमंत्री लालुप्रसाद यादव के ट्विटर पर लिखे गए वाक्य पर समाचार बनाने के दिन आ गए ? भारत और मोदी के विरोध में अगर सनी लियोन भी कुछ बोलेगी तो वह भी नेपाल के अखवार में बैनर न्यूज बन जाएगा । जो देश या विदेश के नागरिक मोदी और भारत का विरोध करता है वह नेपाल की मीडिया के लिए हट केक और स्तुत्य बन जाता है ।

Friday, September 18, 2015

देश कागज पर बना नक्शा नहीं होता

देश कागज पर बना नक्शा नहीं होता
- सर्वेश्वर दयाल सक्सेना


यदि तुम्हारे घर के
एक कमरे में आग लगी हो
तो क्या तुम
दूसरे कमरे में सो सकते हो?
यदि तुम्हारे घर के एक कमरे में
लाशें सड़ रहीं हों
तो क्या तुम
दूसरे कमरे में प्रार्थना कर सकते हो?
यदि हाँ
तो मुझे तुम से
कुछ नहीं कहना है।
देश कागज पर बना
नक्शा नहीं होता
कि एक हिस्से के फट जाने पर
बाकी हिस्से उसी तरह साबुत बने रहें
और नदियां, पर्वत, शहर, गांव
वैसे ही अपनी-अपनी जगह दिखें
अनमने रहें।
यदि तुम यह नहीं मानते
तो मुझे तुम्हारे साथ
नहीं रहना है।
इस दुनिया में आदमी की जान से बड़ा
कुछ भी नहीं है
न ईश्वर
न ज्ञान
न चुनाव
कागज पर लिखी कोई भी इबारत
फाड़ी जा सकती है
और जमीन की सात परतों के भीतर
गाड़ी जा सकती है।
जो विवेक
खड़ा हो लाशों को टेक
वह अंधा है
जो शासन
चल रहा हो बंदूक की नली से
हत्यारों का धंधा है
यदि तुम यह नहीं मानते
तो मुझे
अब एक क्षण भी
तुम्हें नहीं सहना है।
याद रखो
एक बच्चे की हत्या
एक औरत की मौत
एक आदमी का
गोलियों से चिथड़ा तन
किसी शासन का ही नहीं
सम्पूर्ण राष्ट्र का है पतन।
ऐसा खून बहकर
धरती में जज्ब नहीं होता
आकाश में फहराते झंडों को
काला करता है।
जिस धरती पर
फौजी बूटों के निशान हों
और उन पर
लाशें गिर रही हों
वह धरती
यदि तुम्हारे खून में
आग बन कर नहीं दौड़ती
तो समझ लो
तुम बंजर हो गये हो-
तुम्हें यहां सांस लेने तक का नहीं है
अधिकार
तुम्हारे लिए नहीं रहा अब यह संसार।
आखिरी बात
बिल्कुल साफ
किसी हत्यारे को
कभी मत करो माफ
चाहे हो वह तुम्हारा यार
धर्म का ठेकेदार,
चाहे लोकतंत्र का
स्वनामधन्य पहरेदार।

Thursday, December 19, 2013

कहानी : वह विदेशी लड़की

कहानी : वह विदेशी लड़की
आर. सिंह 

वह अचानक ही यहाँ मिल गयी थी. मैं अपने मित्र के साथ छुट्टियाँ बिताने सियाटल आया हुआ था मेरा मित्र सपत्निक यहाँ रहता था . मुझे अमेरिका आये हुए अधिक दिन नहीं हुए थे. पर मैं अमेरिका आने का प्रयत्न तो बहुत दिनों से कर रहा था.मेरा अमेरिका आने का स्वप्न तो और पुराना था.शायद यह सपना मैं तब से संजोये हुआ था ,जबसे कुछ समझने योग्य हुआ था.किशोरावस्था की यह चाहत पढाई समाप्त करते करते पागलपन की सीमा तक पहुँच गयी थी,फिर भी अनेक प्रयासों के बावजूद अमेरिका आते आते मैं छबीस की उम्र पार कर चुका था.

आसक्ति से विरक्ति की ओर …..!

विजय कुमार सप्पाती  

दोस्तों , ये एक प्राचीन बुद्ध कथा है , जिसे मैंने बड़ी मेहनत से अपने शब्दों से सजाया है . इस कथा में एक देशना हम सभी को मिलती है . आपको ये कथा जरुर अच्छी लगेंगी .

:::  भाग एक  ::::
श्रावस्ति नगर के निकट स्थित प्रकृति की सुन्दरता से सजी जेतवन में सुबह की नर्म धूप की सजावट मौजूद थी । और ये धूप, वन में मौजूद पेड़ो से छन कर ; राह पर पड़े पत्तो पर गिरी हुई ओस की बूंदों पर बार बार अपने देवता सूर्य के अद्भुत प्रकाश की झलक दिखा जाती थी ! और इसी सुन्दर प्रदेश में स्थित बुद्ध विहार से महात्मा बुद्ध की धीर गंभीर स्वर में उनकी देशना गूँज रही थी ।

Sunday, November 24, 2013

इतिहास का पन्ना - सिक्किम: एक राष्ट्र के खोने का दर्द

समकालीन तीसरी दुनिया  (सितंबर 2013)
इतिहास का पन्ना
सिक्किम: एक राष्ट्र के खोने का दर्द
सुधीर  शर्मा


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पश्चिम बंगाल के उत्तरी छोर पर कालिम्पोंग नाम का एक पहाड़ी कस्वा है जहां किसी ज़माने में सारी दुनिया के खास लोग आते रहते थे। यहां के अधिकांश बाशिंदे नेपाली मूल के हैं लेकिन परंतु इस स्थान में कोर्इ बहुत आकर्षण नहीं रह गया है। लेकिन अब से कुछ सप्ताह पूर्व तक एक ऐसे देश के अंतिम प्रधानमंत्री कुछ समय तक यहां रह रहे थे जिसने अपनी आजादी से हाथ धो  दिये। 28 जुलार्इ 2007 को 103 वर्ष की उम्र में जिस काजी लेन्दुप दोरजी की मृत्यु हुर्इ उन्होंने भारत में सिक्किम के विलय में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभार्इ थी।

Friday, October 25, 2013

सिक्किम की कहानी संरक्षित प्रदेश से भारत में विलय तक

'सोशल साइंटिस्ट', सितंबर 1974 में प्रकाशित लेख का संक्षिप्त रूप
सिक्किम की कहानी संरक्षित प्रदेश से भारत में विलय तक
नरसिंहन राम


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ब्रिटिश राज से विरासत में मिला सिक्किम नामक 'संरक्षित क्षेत्र  (प्रोटेक्टोरेट)' को 1950 की असमान संधि के जरिए भारत के करीब लाया गया। इसकी संवैधनिक और राजनीतिक स्थिति  को अनिश्चित छोड़ दिया गया और इसकी संप्रभुता की अलग अलग ढंग से व्याख्या की गयी। 1954 के बाद भारत सरकार द्वारा आधिकारिक तौर पर प्रकाशित नक्शों में ब्रिटिश काल के दस्तूर को दरकिनार कर न केवल सिक्किम को  बल्कि भूटान को भी भारत की सीमा के अंदर दिखाया गया। बावजूद इसके भारत के तत्कालीन विदेशमंत्री  एम. सी.छागला ने 1967 में लोकसभा में कहा कि सिक्किम भारत का हिस्सा नहीं है।

इसके बाद भी नक्शों में इन दोनों हिमालयी राज्यों को भारत में ही दिखाया जाता रहा जबकि इन्होंने इस पर अपना एतराज भी जताया। इस बीच भारत ने सिक्किम के अंदर अपनी सेना और केंद्रीय रिजर्व पुलिस भेजीं, सामरिक महत्व की सड़कों का निर्माण किया और सिक्किम की मामूली सी अर्थव्यवस्था में भारतीय व्यापारियों की घुसपैठ केा बढ़ावा दिया।

काजी लेन्दुप दोरजियों का कोई देश नहीं होता – आनंद स्वरूप वर्मा

काजी लेन्दुप दोरजियों का कोई देश नहीं होता – आनंद स्वरूप वर्मा 

‘समकालीन तीसरी दुनिया’ के सितंबर 2013 अंक का संपादकीय


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('लेन्डुप दोर्जेहरुको कुनै देश हुँदैन' आनन्द स्वरुप वर्माले 'समकालीन तीसरी दुनिया' को सेप्टेम्बर २०१३ अंकको सम्पादकीयमा लेख्नु भएको यो लेख पढ्दा लाग्छ नेपालमा सिक्किमको ईतिहास दोहरिरहेको छ । नेपालको छिमेकी देश भुटानको चुनावको सन्दर्भमा लेखिएको भएपनि नेपालीहरुले एकपल्ट यो लेख पढनै पर्छ भन्ने मेरो आग्रह हो । संविधान सभाले संविधान बनाउन नसकेपछि जुन परिस्थितिमा नेपालमा दोस्रो संविधान सभाको निर्वाचन हुँदैछ यी र यस्तै इतिहासका घटनाक्रमले लेखक वर्मा कै भनाई 'जब जब ऐसे गद्दारों का जिक्र आयेगा जिन्होंने अपनी मातृभूमि से विश्वासघात किया, तब तब काजी लेन्दुप दोरजी याद किये जायेंगे। ऐसे लोगों का कोई देश नहीं होता, कोई काल नहीं होता। वे तमाम भौगोलिक सीमाओं से परे कभी भी किसी भी देश में प्रकट हो सकते हैं। कभी यह खतरा नेपाल में दिखायी देता है तो कभी भूटान में' लाई पुष्टि गर्दछ । नेपालको राजनीतिमा लेन्डुप दोर्जेको भूमिका निर्वाह गर्ने को जन्मिएलान त ? प्रस्तुत लेख पढिसकेपछि हरेक नेपालीको मनमस्तिष्कमा स्वाभाविक प्रश्न उठ्न थाल्दछन् ।  – ब्लगर राज श्रेष्ठ)

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इस बार भूटान के चुनाव ने न जाने क्यों काजी लेन्दुप दोरजी की याद ताजा कर दी। ऐसा नहीं कि दोरजी को याद करने वाला मैं अकेला व्यक्ति हूं- भूटान और नेपाल के कई क्षेत्रों में उन्हें आज लोग फिर याद करने लगे हैं। राजनीति का कुछ ऐसा चमत्कार ही है कि जब जब भारत की दादागिरी (जिसे शिष्ट भाषा में प्रभुत्ववाद कह सकते हैं) की झलक हिमालय से सटे देशों में दिखायी देती है तो वह घाव हरा हो जाता है जो लेन्दुप दोरजी की कृपा से लोगों को झेलना पड़ा है। इसे इतिहास की विडंबना ही कहेंगे कि भारत की भौगोलिक सीमा का विस्तार करने वाले इस व्यक्ति को भारत में भी कभी याद नहीं किया गया। बेशक, सरकारी स्तर पर उन्हें कुछ पद्म भूषण वगैरा जैसा सम्मान देकर एक रस्म अदायगी कर दी गयी लेकिन जिस अकेलेपन और उदासी के अंतिम क्षणों को उन्होंने कालिमपोंग में बिताते हुए जिंदगी समाप्त की वह सचमुच एक दयनीय स्थिति थी। तो भी इतिहास में वह खुद को एक दूसरे ढंग से अमर कर गये। जब जब ऐसे गद्दारों का जिक्र आयेगा जिन्होंने अपनी मातृभूमि से विश्वासघात किया, तब तब काजी लेन्दुप दोरजी याद किये जायेंगे। ऐसे लोगों का कोई देश नहीं होता, कोई काल नहीं होता। वे तमाम भौगोलिक सीमाओं से परे कभी भी किसी भी देश में प्रकट हो सकते हैं। कभी यह खतरा नेपाल में दिखायी देता है तो कभी भूटान में।